मनीष चौधरी
मोरवा क्षेत्र से पलायन होगा या होगा पुनर्वास
सिंगरौली (मध्य प्रदेश)। एनसीएल के जयंत एवं दूधिचुआ परियोजना के विस्तार के लिए 03 मई 2016 को पहली बार मोरवा में सी बी एक्ट की धारा 4(1) लगी। तब से 4 साल तक मोरवा का विकास अवरुद्ध रहा। फिर उतने ही रकबे के लिए 9 सितम्बर 2020 को पुनः धारा 4(1) लगायी गयी और फिर 09 फरवरी 2024 को संपूर्ण क्षेत्र में धारा 9 लगा दी गयी। इन 08 वर्षों में क्षेत्र का विकास कार्य अवरुद्ध होने के साथ साथ तमाम तरह के प्रतिबंधों में मोरवा वासी जीते रहे। यहाँ बँक संपत्ति बंधक रखकर भी लोन नहीं मिलता, कलेक्टर द्वारा भूमि एवं परिसंपत्तियों को विक्रय नहीं करने देना, यहां के लोग बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिये, विवाह शादी करने के लिये संपत्ति नहीं विक्रय कर सकते। एनसीएल ने यहां ऐसी परिस्थितियों निर्मित कर दी की हर हाल में तिल तिल कर जीने को मजबूर है यहां के लोग।
इतने वर्षों के बाद फिलहाल लोगों को मुआवजा हेतु सर्वे का काम यहां चालू है। लेकिन एनसीएल कोई स्पष्ट नीति नहीं है कब विस्थापन होगा और कहाँ पुनर्वास किया जाएगा। विस्थापन कानून के तहत नियमों की बात करें तो भूमि एवं संपत्तियों की संपूर्ण राशि देने के उपरांत और पुनर्वास स्थल पर संपूर्ण सुविधायुक्त व्यवस्था (LAAR-2013 की धारा 38(1) के अनुसार हो जाने पर ही विस्थापन प्रारंभ किया जा सकता है।
वैसे पूर्व के अनुभव बताते हैं कि एनसीएल नियमों और कानून की कोई कद्र नही करता है, ना ही जिला प्रशासन की बात मानता है। किश्तों पर राशि का भुगतान करना और यहां के लोगों को पुनर्वास से कोसों दूर रखना एनसीएल के प्रवृत्ति में शामिल है।
एनसीएल के पूर्व सीएमडी भोला सिंह के द्वारा एसवीएम के साथ 06 मीटिंग की गयी। और 07वीं मीटिंग में भलुगड आर एंड आर साइट को अंतिम रूप दिया गया था एवं 07/12/23 को मिनिट्स जारी कर स्पष्ट कर दिया गया कि पुनर्वास स्थल इस बार सीबी एक्ट की भूमि में नही बाल्के LARR 2013 के अनुसार भूमि अधिग्रहण कर भलुगड में 40X60 के प्लाट सुव्यवस्थित आर एंड आर कालोनी के बीच विकसित जायेगा। साथ ही प्रत्येक बालिग को 15 लाख आरिक्त दिये जायेंगे। कोयला मंत्रालय के सचिव श्री मीणा का स्पष्ट निर्देश भी था कि विस्थापित मंच के साथ मंत्रणा करने के उपरांत जब तक सब कुछ लिखित में तय नहीं होता तब तक धारा 9 नहीं लगाई जाएगी। इसी तारतम्य में 7/12/23 को तय हो जाने के उपरांत 9 फरवरी 2024 को धारा 9(1) लगाते हुए स्पष्ट कर दिया गया था कि विस्थापन और पुनर्वास होगा।
कुछ समय बिता तो नहीं सीएमडी ने इसी क्रम में बात को आगे बढ़ते हुए कलेक्टर से विस्थापन स्थान को लेकर कई दौर की मीटिंग भी की। कलेक्टर से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुनर्वास स्थल हेतु एनसीएल ने 3 ग्राम दादर, भलूगढ़ एवं गोदवाली में शासकीय भूखंड जो करीब 330 हेक्टेयर हेतु आवेदन के माध्यम से मांग की। जिला कलेक्टर ने भी तत्काल भूखंड सर्वेक्षण करने और सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश जारी कर दिए। करीब 50000 विस्थापितों को पुनर्वास की चिंता कलेक्टर महोदय एवं एनसीएल दोनों को थी। इस दौड़ में तेजी से कार्य भी हुए। आर एंड आर साइट में कलेक्टर एवं एनसीएल सीएमडी का संयुक्त दौरा भी हुआ। तत्पश्चात एनसीएल की टीम ने सर्वेक्षण कार्य जारी कर दिया। उपयुक्त तीनों ग्रामों में ड्रोन से भी सर्वेक्षण पूर्ण कर लिया गया था और जिला प्रशासन ने भी भूमि की कुल कीमत का डिमांड नोट जो लगभग 120 करोड़ का था, जारी कर एनसीएल को दिया था। एनसीएल ने कलेक्टर महोदय के आर एन आर साइट की घोषणा भी की। लेकिन इतनी बड़ी आबादी के पुनर्वास की व्यवस्था लार एक्ट 2013 अधिनियम की तीसरी अनुसूची के अनुरूप सर्व सुविधायुक्त विकसित कर देने में एनसीएल के हाथ पैर फूलने लगे। देश का इतना बड़ा विस्थापन एनसीएल ने क्या कोल इंडिया की किसी भी अनुषांगिक कंपनी ने नहीं किया था। आखिर एनसीएल ने हिम्मत हराते हुए नए-नए रास्ते अपने शुरू किया और लगा इस मुद्दे से ध्यान भटकने की कोशिश हो रही है। इसके लिए विस्थापित संगठनों में फूट डालने की कोशिश की की गई। जिस पर बहुत हद तक एनसीएल सफल भी रहा और देखते ही देखते विस्थापित संगठनों के कई ग्रुप बन गए। इसके बाद नगर निगम क्षेत्र में बसाहट समेत मोरवा के नजदीक पिडताली और खिरवा में भी बसाहट की बात की जाने लगी। एनसीएलके वरिष्ठ अधिकारियों ने इन जगहों का भी सर्वे किया। पर सभी संगठनों में एकमात्र राय नहीं रही, अतः विस्थापन स्थल में प्लॉट के बदले पैसा लेने की बात चल पड़ी। कुछ दिनों बाद एनसीएल द्वारा विस्थापन स्थल को ही समाप्त करने की कोशिश की जाने लगी। अब एनसीएल इसी मनसा को परवान चढ़ाने में लगा है।
व्यापारियों को कौन करेगा संतुष्ट
इधर बाजार का व्यापारी वर्ग उधेड़बुन की स्थिति में फंसा है। हजारों की संख्या में दुकान, होटल, सब्जी मंडी, फल मंडी, मीट मछली मंडी, बाजार यह कहां जाएंगे। एनसीएल ने इस पर भी कभी कोई चर्चा नहीं की। वह इस गफलत और मुगालते में रहा कि जहां पूरा शहर जाएगा उनका व्यापार भी वहां चलेगा। अब बड़ा प्रश्न यही है कि यदि एनसीएल अपनी इस कूटनीति में सफल हो गया और पुनर्वास स्थल कहीं नहीं बनाया तो निश्चित ही व्यापारी वर्ग आंदोलन पर उतर जाएगा और विस्थापन सरल नहीं होगा। इन सभी उधेड़बुन के बीच मोरवा के आम लोग विस्थापन को लेकर पसोपेश में है।