श्री राधा अष्टमी और जेष्ठा गौरी व्रत: जानें महत्व और पूजन विधि

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आचार्य पण्डित सुशील तिवारी

सोनभद्र। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्री राधा अष्टमी और जेष्ठा गौरी व्रत किया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दिलीप देव द्विवेदी जी महाराज के अनुसार, भगवती राधा जी का प्राकट्य मध्यान्ह व्यापिनी भाद्र शुक्ल अष्टमी में हुआ था, इसलिए मध्यान्ह में व्यापिनी भाद्रपद शुक्ल अष्टमी में राधा अष्टमी व्रत किया जाता है।

जेष्ठा गौरी व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को एक पक्ष तक चलने वाला व्रत है, जो महालक्ष्मी के रूप में जाना जाता है। जेष्ठा नक्षत्र होने पर यह व्रत जेष्ठा कहलाता है, जिसका अर्थ होता है बड़ी। इस व्रत को करने से दरिद्रता के नाश होते हैं और संतान संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

पूजन विधि: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवती का पूजन करना चाहिए।

भगवती को दूर्वा, फूल, फल और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए।

रात्रि जागरण करना चाहिए और भगवती का पूजन करना चाहिए।

16 दिन तक यह व्रत करने का नियम है, और 12 वर्ष या जीवनभर करने का विधान है।

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