अमित मिश्रा
नई दिल्ली में आयोजित हुआ रोजगार अधिकार अभियान का राष्ट्रीय सम्मेलन
सोनभद्र(उत्तर प्रदेश)। देश में संसाधनों की कमी नही है यदि देश के बड़े कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगा दिया जाए तो हर नागरिक के गुणवत्तापूर्ण व मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के संवैधानिक अधिकार की गारंटी होगी। साथ ही भोजन का अधिकार, समुचित वृद्धावस्था पेंशन, किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन की बहाली, ठेका मजदूर व आंगनबाड़ी, आशा जैसी स्कीम वर्कर्स के सम्मानजनक वेतनमान और पक्की नौकरी, सभी नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा के अधिकार को दिया जा सकता है। यह प्रस्ताव नई दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित रोजगार अधिकार अभियान के राष्ट्रीय सम्मेलन में लिया गया।
राष्ट्रीय सम्मेलन में सोनभद्र के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और सोनभद्र के हालात पर अपनी बात रखी। प्रतिनिधियों में सोनभद्र की जिला संयोजक सविता गोंड, जिला अध्यक्ष रूबी सिंह गोंड और शक्तिनगर के युवा नेता मुकेश सिंह को राष्ट्रीय संचालन समिति में सर्वसम्मति से चुना गया।
सम्मेलन को प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर प्रभात पटनायक, अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष अखिलेन्द्र प्रताप सिंह और समाज सरोकारी व गांधीवादी कुमार प्रशांत, पूर्व सांसद व वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने संबोधित किया। सम्मेलन में राज्य, जोन, जिला व विद्यालयों में रोजगार संवाद करने का निर्णय हुआ और सोनभद्र में भी इस संवाद अभियान को चलाने की बात तय हुई है।
सम्मेलन में देशभर में रोजगार व नौकरी के आंदोलन को संचालित करने वाले प्रतिनिधियों, छात्र युवा संगठनों के पदाधिकारी और किसान व मजदूर आंदोलन के प्रतिनिधियों व समाज सरोकारी नागरिकों ने भी अपनी बातचीत को रखा।
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि देश में रोजगार के संकट को हल करना आम आदमी की जिंदगी को बचाने के लिए बेहद जरूरी है। इतने बड़े पैमाने पर श्रम शक्ति का विनाश पहले कभी नहीं हुआ जितना कि आज हो रहा है।
सोनभद्र के प्रतिनिधियों ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो रही है और पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया जा रहा है। आदिवासी अंचलों में सरकार की न्यूनतम सुविधाओं का भी घोर अभाव है और वहां से रोजगार की तलाश में पलायन एक बड़ी समस्या बना हुआ है। औद्योगिक क्षेत्र में ठेका मजदूरों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा भी हासिल नहीं हो रही है। ऐसी स्थिति में रोजगार अधिकार अभियान में लोकतंत्र और सम्मानजनक जीवन के सवाल भी मजबूती से उठेगें।