दुनिया की सबसे प्राचीन मंदिर: माँ मुंडेश्वरी भवानी
बिहार के भभुआ जिले के कैमूर की पहाड़ी की चोटी पर स्थित मुंडेश्वरी भवानी का अति प्राचीन मंदिर दुनिया की सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया, इसकी वास्तविक जानकारी सुलभ नहीं है, लेकिन अनुमानतः यह मंदिर 389 ईस्वी के पूर्व का है। इसे दुनिया की सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।
भगनावशेष रुप का यह मंदिर अपने भव्यता की कहानी कहती हैं। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ हैं, उन पर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र मंत्र उत्कीर्ण हैं।
मंदिर की विशेषताएं
मंदिर अष्ट कोणीय है, जिसके गर्भ गृह में बीचोबीच चतुर्मुखी शिव लिंग, दाहिनी और माता रानी और पूर्व में विघ्नेश्वर हैं। माँ की प्रतिमा पहले बाहर थी, जिसे बाद में मंदिर के भीतर स्थापित किया गया। माता मुंडेश्वरी मंदिर में सूर्योदय से सूर्यास्त तक दर्शन पूजन होते है।
मंदिर के बीच में भगवान शिव पर पार्वती के साथ भव्य शिव की चतुर्लिंग प्रतिमा के रूप में विद्यमान हैं। गणेश जी की भव्य प्रतिमा स्थापित हैं। इसे शिव पार्वती मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।
मुंडेश्वरी नाम की कहानी
कहते हैं कि प्राचीन काल में यहाँ पर मंड नाम का राजा हुआ करता था, जो माता रानी का अनन्य भक्त था। माता रानी की कृपा से इस राजा को अपार शक्तियाँ प्राप्त हो गईं थीं, लेकिन शक्ति के मद में चूर होकर राजा अत्याचारी हो गया। जब राजा का अत्याचार बढ़ता गया, तो माँ ने अपना रौद्र रूप दिखाया और अपने ही भक्त का वध किया था। जिसके चलते माँ का नाम मुंडेश्वरी पड़ा।
526 सीढ़ियों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
मां मुंडेश्वरी के मंदिर तक पहुंचने के लिए 526 सीढ़ियों हैं। हालांकि दूसरा रास्ता सड़क वाला भी है, जिस पर फोर व्हीलर या टू व्हीलर से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
रक्तहीन पशु बलि
मां मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे विख्यात बात यह है कि यहाँ बिना खून बहाए बकरों की बलि दी जाती है। बकरे को मां मुण्डेश्वरी के चरणों में लिटाकर पुजारी ने अक्षत से प्रहार करते हैं, जिसके बाद बकरा पूरी तरह मूर्छित हो जाता है। दुबारा अक्षत के प्रहार से बकरा उठ खड़ा होता है, जिसके बाद बकरा श्रद्धालु को सौंप दिया जाता है।
इको पार्क
मां मुंडेश्वरी धाम के परिसर में एक खास वन्य प्राणी इको पार्क है। 14 एकड़ में फैला पार्क खास है क्योंकि यह बिहार का पहला वन्य प्राणी इको पार्क है। पार्क को बनाने में 10 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसका उद्देश्य लोगों को वन्यजीवों और पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है। पार्क में जानवरों की कई मूर्तियां हैं जो बच्चों को आकर्षित करेंगी और उन्हें प्रकृति के करीब लाती हैं।
मंदिर परिसर में बिखरी पड़ी प्रतिमाएँ