



अरविंद दुबे
चोपन (सोनभद्र)। “जीरो टॉलरेंस” का नारा बुलंद है, पर जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर। जिले में कानून के पहरेदार आंख मूंदे बैठे हैं और शराब के ठेकेदार अपने धंधे को नए जोश से अंजाम दे रहे हैं।
चोपन बस स्टैंड हो या जुगैल थाना क्षेत्र का बड़गावां, हर जगह रात दस के बाद भी जाम छलकते देखे जा सकते हैं। कहीं शटर आधा उठाकर बोतलें बेची जा रही हैं तो कहीं दुकानें बेहिचक खुली हैं। लगता है मानो सरकारी नियमों का “अर्धविराम” रात होते ही पूरा “विराम” में बदल जाता हो।

स्थानीय लोग बेचैन हैं। अराजक तत्वों की आवाजाही से रात का सन्नाटा भी डराने लगा है। लोगों को न अपने घर की चौखट पर सुकून है, न रास्तों पर चैन।
शराब माफिया बेखौफ हैं, और पुलिस-आबकारी विभाग की भूमिका पर सवालिया निशान। जनता पूछ रही है, “कहां है रात का कानून, कहां हैं नियमों के रखवाले?”
जब इस बाबत जिम्मेदार अधिकारियों से सवाल पूछा गया तो जवाब वही पुराना, “कार्रवाई होगी।” मगर सवाल यह है कि कब? तब जब कोई अनहोनी हो जाए?
साफ है, फिलहाल शराब के ठेकेदारों के आगे नियम-कायदे पानी भरते नजर आ रहे हैं, और आम जनता असहाय निगाहों से तमाशा देखने को मजबूर है।