श्रीरामचरित मानस में सुंदरकांड सबसे महत्वपूर्ण कांड, श्रीराम भक्तो की झलती है आस्था व विश्वास जिसमे हनुमान का प्रमुख स्थान:आचार्य सूर्यलाल मिश्र

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अमित मिश्रा

भगवती सीता की खोज में हनुमान जी पहुंचे लंका

महिलाओं ने किया सुन्दर काण्ड का पाठ, मानस ‌पंडाल में उमड़ा भक्तों का जनसैलाब

सोनभद्र(उत्तर प्रदेश)। जनपद मुख्यालय स्थित सोनभद्र नगर के आटीएस क्लब मैदान में चल रहे श्री राम चरित मानस नवाह पाठ महायज्ञ के सातवे दिन श्री राम दरबार का भव्य श्रृंगार किया गया। इसके पश्चात मंचासीन आचार्यों एवं भक्तों गणों ने दिव्य आरती उतारी तत्पश्चात मुख्य यजमान सत्यपाल जैन ने सह पत्नी रजनी जैन के साथ रुद्राभिषेक किया।


बतादें कि सातवें दिन की कथा सुंदरकांड पर आधारित थी जिसमें हनुमानजी का लंका को प्रस्थान, सुरसा मान जी के बल बुद्धि की परीक्षा,छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वर्णन, लंकिनी पर प्रहार, लंका में प्रवेश, हनुमान विभीषण संवाद, हनुमान जी का अशोक वाटिका में सीता को देखकर दुखी होना और रावण का सीता को भय दिखाना, सीता – हनुमान संवाद, हनुमान द्वारा अशोक वाटिका विध्वंस अक्षय कुमार का वध और मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर सभा में ले जाना, हनुमान रावण संवाद, लंका दहन आदि प्रसंगों का पाठ किया गया।


दोहे पर प्रकाश डालते हुए मुख्य व्यास आचार्य सूर्य लाल मिश्र ने कहा कि- गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस में सुंदरकांड एक महत्वपूर्ण कांड है। हनुमान रावण संवाद, लंका दहन आदि महत्वपूर्ण दोहो पर प्रकाश डालते हुए कहा की- गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरितमानस में सुंदरकांड एक महत्वपूर्ण कांड हैं जहां पर सभी राम भक्तों की आस्था और विश्वास की झलक उनके कृत्यो से मिलती है, जिसमें राम भक्त हनुमान का प्रमुख स्थान है।


जामवंत के कहने पर हनुमानजी को उन्हें अपना बल याद आया और वे हृदय में श्री रघुनाथ जी को धारण कर हर्षित होकर लंका की ओर प्रस्थान किए। श्री हनुमान जी की बुद्धि बल की परीक्षा लेने के लिए देवताओं ने सुरसा नामकओल्गा सर्पों की माता को भेजा सुरसा की परीक्षा में सफल रहे। और उसने आशीर्वाद देते हुए कहाराम काजु सबु करहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आशीष देई गई सो हरसी चले वह हनुमान।।
सुरसा के आशीर्वाद से हर्षित होकर हनुमानजी लंका की और प्रस्थान किये और लंका में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए वे माता का दर्शन कर उनसे उनका संदेश चूड्रामण लेकर समुद्र पार करके वापस आ गए।


वही इसके एक दिन पूर्व रात्रि प्रवचन में कथा व्यास नीरज भईया ने भरत द्वारा राम जी को अयोध्या वापस लाने के हर्ट को प्रकाशित करते हुए बताया कि दो प्रेमियों के बीच निर्णय कोई दे नहीं रहा है मुख्य वशिष्ठ वह साथ ही परिवार समाज की कोई भी सदस्य निर्णय देने में असमर्थ है। तब राजा जनक ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि भरत क्या आपने कभी अपने प्रेमी रामजी की इच्छा पूछी कि वह क्या चाहते हैं तब भारत ने राम जी की आज्ञा से सिर पर खड़ा हूं रखकर अयोध्या में 14 वर्ष तक राज्य का संचालन किया।
आगे उन्होंने ने दोहे का वर्णन करते हुए कहा कि सुपनखा रावण के बहिनी। दुष्ट ह्रदय दारुण दुख अहिनी ।। अर्थात बताया कि सुपुर नखा रावण की बहन थी। अर्थात सुपनखा रावण की बहन थी तथा दुष्ट हृदय की सर्वोपणी थी।


इस अवसर पर इंद्रदेव देव सिंह, रवींद्र पाठक, दुर्गा, परशुराम, , सुशील पाठक, शिशु तिवारी, किशोर केडिया, अंशुमान पटेल,डॉ धर्मवीर तिवारी, राजेश जायसवाल सहित अन्य लोग उपस्थित रहें।

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