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O- लौहपुरुष की जयंती बनी सियासी रणनीति, सोनभद्र से बीजेपी ने शुरू की ‘एकता से चुनाव’ की कवायद
सोनभद्र । 31 अक्टूबर को लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के मौके पर जहां पूरे देश में श्रद्धांजलि कार्यक्रमों की तैयारी चल रही है, वहीं सोनभद्र जिला इस बार बीजेपी की राजनीतिक प्रयोगशाला बनता दिख रहा है।
जिला प्रशासन से लेकर संगठन तक पूरा तंत्र इस आयोजन को लेकर सक्रिय है। प्रभारी मंत्री ने समीक्षा बैठक कर अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए हैं कि पटेल जयंती को “राष्ट्रीय एकता दिवस” से आगे बढ़ाकर “जनसंपर्क और जनजागरण अभियान” के रूप में मनाया जाए।
सोनभद्र में असामान्य हलचल, पर एक सवाल बरकरार
दिलचस्प बात यह है कि जिले में सरदार पटेल की सिर्फ एक ही प्रतिमा मौजूद है, जो जिला मुख्यालय या मुख्य नगर से 15 किलोमीटर दूर है । लेकिन आयोजन की तैयारी ऐसे स्तर पर है मानो यह कोई राजनीतिक उत्सव हो।
भाजपा संगठन के भीतर इसे “रणनीतिक अभियान” की तरह देखा जा रहा है, जिसके माध्यम से पार्टी आगामी चुनावों के लिए सामाजिक आधार को फिर से मजबूत करना चाहती है।
जातिगत समीकरणों के केंद्र में सोनभद्र
सोनभद्र की राजनीति हमेशा से जातिगत संतुलन पर टिकी रही है।
जिले की कुल आबादी में अनुसूचित जाति (SC) लगभग 22.6 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (ST) करीब 20.7 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग लगभग 30 प्रतिशत है।
यहाँ की राजनीति का असली संतुलन इन्हीं समूहों से तय होता है।
यही वजह है कि भाजपा सरदार पटेल की जयंती को ओबीसी समाज, विशेषकर कुर्मी और मौर्य समुदायों, तक पहुंच बढ़ाने के अवसर के रूप में देख रही है।
2022 विधानसभा चुनाव, बीजेपी आगे, पर सपा ने बढ़ाई पैठ
2022 के विधानसभा चुनाव में सोनभद्र की चारों सीटों, रोबर्ट्सगंज, दुद्धी, ओबरा और घोरावल, पर बीजेपी ने बढ़त बनाई, पर समाजवादी पार्टी ने पिछली बार की तुलना में अपना वोट शेयर बढ़ाया।
जिले में कुल मिलाकर बीजेपी को करीब 42.9 प्रतिशत वोट, जबकि सपा को लगभग 35.3 प्रतिशत वोट मिले।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव ओबीसी और एससी वर्ग के बीच सपा की धीरे-धीरे बढ़ती स्वीकार्यता का संकेत था।
2024 लोकसभा चुनाव, बदला समीकरण, भाजपा को मिली कड़ी टक्कर
2024 के लोकसभा चुनाव में रोबर्ट्सगंज (SC) सीट, जो पूरे सोनभद्र को समेटे हुए है, में मुकाबला कड़ा रहा।
यह सीट समाजवादी पार्टी के छोटेलाल ने लगभग 4.65 लाख (46%) वोट पाकर जीती, जबकि बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की प्रत्याशी रिंकी सिंह को करीब 3.36 लाख (33%) वोट मिले।
बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 1.18 लाख (11%) वोट मिले।
इन आंकड़ों से साफ है कि एससी और ओबीसी मतदाता भाजपा से कुछ दूरी पर गए हैं, जबकि सपा ने ग्रामीण और पिछड़े तबकों में अपनी पकड़ मजबूत की है।
पटेल जयंती, ओबीसी समीकरण साधने की कोशिश
बीजेपी जानती है कि पूर्वांचल की राजनीति में कुर्मी, मौर्य, पटेल और गंगवार जैसे ओबीसी समूह निर्णायक भूमिका निभाते हैं ।
पार्टी इस बार सरदार पटेल की 150वीं जयंती को ऐसे अवसर के रूप में देख रही है, जिससे सामाजिक संदेश के साथ राजनीतिक जमीन भी तैयार की जा सके।
राज्यभर में रन फॉर यूनिटी और पटेल @150 यूनिटी मार्च जैसे आयोजनों की श्रृंखला चलाई जा रही है।
सोनभद्र से भी चयनित खिलाड़ी और युवा प्रतिनिधि गुजरात के करमसद (पटेल की जन्मभूमि) और फिर केवड़िया (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) तक की पदयात्रा में भाग लेंगे।
सोनभद्र में यह आयोजन महज प्रतीकात्मक नहीं है।
यह उस क्षेत्र में पार्टी संगठन को फिर से जीवंत करने की कवायद है, जहाँ 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगा।
जिले के अंदर कुर्मी और अनुसूचित जाति मतदाताओं में नया रुझान देखने को मिला है।
ऐसे में पटेल जयंती को पार्टी के लिए “एकता के बहाने पुनर्गठन का अवसर” माना जा रहा है।
कांग्रेस व समाजवादी पार्टी का आरोप है कि भाजपा स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रनायकों की विरासत को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है।
वहीं भाजपा का कहना है कि सरदार पटेल की जयंती “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की भावना को मजबूत करने का प्रयास है।
भाजपा नेताओं का मानना है कि राष्ट्रीय एकता और सामाजिक न्याय दोनों का प्रतिनिधित्व सरदार पटेल करते हैं, और यही संदेश पार्टी को ग्रामीण इलाकों में फिर से प्रासंगिक बना सकता है।
सोनभद्र में पटेल की 150वीं जयंती का आयोजन केवल श्रद्धांजलि का मंच नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा 2027 और उसके पहले के उपचुनावों की
राजनीतिक रणनीति का प्रारंभिक चरण बन गया है।
यहां से भाजपा संगठन को जमीनी स्तर पर सक्रिय करने, पिछड़े वर्गों से संवाद बढ़ाने और ओबीसी वोटबैंक को पुनः साधने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
जैसा कि वरिष्ठ भाजपा नेता धर्मवीर तिवारी ने कहा,
“यह कार्यक्रम सिर्फ माला चढ़ाने का नहीं, बल्कि उस एकता को फिर से गढ़ने का अवसर है जिसके लिए सरदार पटेल खड़े थे।”
लौहपुरुष की जयंती सोनभद्र की राजनीति में नई हलचल लेकर आई है।
जहाँ एक ओर श्रद्धा का स्वर है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक गणित भी।
बीजेपी इस मौके को साधने में लगी है, ताकि आने वाले चुनावों में “राष्ट्रीय एकता” के नाम पर “सामाजिक एकता” की नई पटकथा लिखी जा सके।







