बीजेपी विधायकों का होगा ऑडिट, टिकट से पहले तय होगी परफॉर्मेंस की कसौटी

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O- चुनाव से पहले कार्यप्रणाली की गहन समीक्षा, तीसरी बार सत्ता वापसी की तैयारी में जुटी पार्टी

लखनऊ (उत्तर प्रदेश) । सूबे में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तैयारियों का बिगुल फूंक दिया है। दो बार सरकार बना चुकी बीजेपी अब ‘हैट्रिक’ की तैयारी में जुट गई है। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम के रूप में पार्टी ने अब अपने मौजूदा विधायकों की कार्यप्रणाली का ऑडिट कराने का निर्णय लिया है।

सूत्रों के अनुसार, यह ऑडिट पूरी तरह से विधायकों के कामकाज, जनसंपर्क, छवि, और क्षेत्र में प्रभाव जैसे बिंदुओं पर आधारित होगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पार्टी केवल उन्हीं चेहरों को टिकट दे, जिन्होंने जमीनी स्तर पर जनता के लिए कार्य किया है और जिनकी लोकप्रियता क्षेत्र में बरकरार है।

क्या होगा ऑडिट में शामिल?

बीजेपी के रणनीतिकारों द्वारा तैयार किए जा रहे इस सर्वे और ऑडिट में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:

  • जनता के बीच लोकप्रियता और साख
  • विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों की स्थिति
  • पार्टी और सरकार के कार्यक्रमों की क्रियान्विति
  • स्थानीय संगठन और कार्यकर्ताओं से संबंध
  • जन शिकायतों के समाधान की तत्परता
  • सामाजिक और जातीय समीकरणों में सामंजस्य
  • विपक्ष के मुकाबले राजनीतिक पकड़ और चुनौती की क्षमता

कौन करवा रहा है ऑडिट?

इस ऑडिट की जिम्मेदारी राज्य सरकार और संगठन के बीच समन्वय बनाकर एक विशेष सर्वे एजेंसी को सौंपी गई है। यह एजेंसी गुप्त रूप से विधायकों के क्षेत्र का दौरा करेगी और जनता से सीधा फीडबैक लेगी। साथ ही, रिपोर्ट्स को केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

टिकट वितरण की रणनीति में बदलाव

पार्टी सूत्रों का मानना है कि “अब टिकट परंपरागत रूप से नहीं, बल्कि प्रदर्शन के आधार पर मिलेगा।” 2017 और 2022 की सफलता को दोहराने के लिए बीजेपी अपने संगठनात्मक ढांचे को और मजबूत करने में लगी है। कई पुराने चेहरों की जगह नए उम्मीदवारों को मौका देने की भी संभावना जताई जा रही है।

पार्टी की रणनीति — हर सीट पर मजबूत दावेदारी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीते एक दशक से बीजेपी ने मजबूती से जगह बनाई है। पार्टी अब 2027 की ओर देखते हुए 2025 के लोकसभा चुनावों को एक सेमीफाइनल के रूप में देख रही है। पार्टी हाईकमान का मानना है कि अब वक्त आ गया है जब केवल पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि प्रत्याशी की साख और कामकाज के आधार पर वोट मांगे जाएं।

चुनौती और अवसर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम बीजेपी को भीतर से अधिक सशक्त कर सकता है, लेकिन अगर ऑडिट में कुछ बड़े चेहरों की रिपोर्ट नकारात्मक आती है, तो आंतरिक विरोध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। फिर भी, दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह निर्णय पार्टी के लिए एक साहसिक और दूरदर्शी पहल माना जा रहा है।

नतीजा

बीजेपी का यह सर्वे और ऑडिट आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक ‘फिल्टरिंग प्रोसेस’ के तौर पर काम करेगा। यह न केवल पार्टी की चुनावी रणनीति को स्पष्ट करेगा, बल्कि नेताओं को भी संदेश देगा कि परफॉर्मेंस ही प्राथमिकता है, टिकट का आधार अब सिर्फ वफादारी नहीं, जनता की नजर में छवि और कामकाज होगा।

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