इस सरकार मे शिक्षा माफिया की लूट जारी, अभिभावकों की सुनवाई कब?

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अमित मिश्रा

शिक्षा माफिया की तानाशाही से त्रस्त अभिभावक, एनएसयूआई ने सौंपा ज्ञापन

बढ़ती फीस और महंगी किताबों ने तोड़ी अभिभावकों की कमर, आखिर कब मिलेगी राहत?

सोनभद्र। शिक्षा अब अधिकार नहीं, बल्कि एक महंगा सौदा बन गई है। जिले में स्कूलों और कॉलेजों की मनमानी फीस वसूली और किताबों की आसमान छूती कीमतों ने अभिभावकों को आर्थिक रूप से तोड़ दिया है। शिक्षा माफिया की तानाशाही इस हद तक बढ़ चुकी है कि गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए बच्चों को पढ़ाना किसी सपने से कम नहीं रहा।

इन्हीं समस्याओं को लेकर भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के कार्यकर्ताओं ने जिला अध्यक्ष अंशु गुप्ता के नेतृत्व में अपर जिलाधिकारी सहदेव मिश्रा के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन को उपजिलाधिकारी रॉबर्ट्सगंज ने स्वीकार किया।

“शिक्षा माफिया की लूट बंद हो!” अभिभावकों की गूंज

एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष अंशु गुप्ता ने कहा कि हर साल फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। एडमिशन के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है, फिर सालाना शुल्क के नाम पर अभिभावकों की जेब पर डाका डाला जाता है। किताबों, कॉपियों और अन्य स्टेशनरी की कीमतें भी मनमाने ढंग से बढ़ा दी जाती हैं, जिससे हर वर्ग के लोगों को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है”।

“बच्चे स्कूल जाएं या माता-पिता कर्ज चुकाएं?”

छात्र नेता संदीप ने कहा कि एलकेजी से लेकर ग्रेजुएशन तक हर साल फीस में बेतहाशा वृद्धि की जा रही है। शिक्षा माफिया अपने मनमाने नियम थोप रहे हैं और प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है। इस तानाशाही का सबसे ज्यादा असर मध्यम वर्गीय परिवारों पर पड़ रहा है, जिनके लिए बच्चों को शिक्षित करना अब एक भारी आर्थिक बोझ बन चुका है।

छात्र नेता सौम्य सोनकर ने कहा कि शिक्षा पर यह हमला भाजपा शासन की विफलता को दर्शाता है। कापी-किताबों की कीमतें बेलगाम हो चुकी हैं और गरीब परिवारों के बच्चों के लिए स्कूल जाना किसी लग्जरी से कम नहीं रहा।

“क्या सरकार जागेगी?” – एनएसयूआई की चेतावनी

एनएसयूआई ने प्रशासन से मांग की कि शिक्षा माफिया पर सख्त कार्रवाई हो और स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर तत्काल रोक लगाई जाए। छात्र संगठन ने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।

ज्ञापन सौंपने के दौरान दिव्यांशु कुमार, अमन पंडित, राहुल मदेशिया, संदीप समेत कई कार्यकर्ता उपस्थित रहे। अभिभावकों का दर्द अब सड़कों पर गूंज रहा है, लेकिन क्या प्रशासन सुनेगा?

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