शौर्य दिवस मना कर भीमा कोरेगांव की लड़ाई को याद किया

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संवाददाता लकी केशरी

नौगढ़ (चंदौली)। भीम आर्मी आजाद समाज पार्टी के तत्वाधान में शौर्य दिवस मनाया गया। यह आयोजन डा० भीम राव अंबेडकर पार्क नौगढ़ में रखा गया था। इस कार्यक्रम का आयोजन भीम आर्मी, भारत एकता मिशन और आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) ने मिलकर किया था।

इस कार्यक्रम में जिला संरक्षक भीम आर्मी मास्टर राम चन्द्र राम, जिला सचिव ASP श्याम सुन्दर और अध्यक्षता रामदीन ने अपने विचार व्यक्त किए। इसके अलावा, जिला अध्यक्ष ASP शैलेश कुमार, उपेन्द्र कुमार गाडगे, युवा मोर्चा जिला अध्यक्ष जिला संगठन मंत्री नन्दन कुमार और चंद्रभान राव भी इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

इस अवसर पर वक्ताओं ने भीमा कोरेगांव की लड़ाई का उल्लेख किया, जिसमें 500 महार सैनिकों ने 28,000 पेशवा सैनिकों को हराया था। यह लड़ाई 1 जनवरी 1818 को हुई थी और इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मास्टर राम चन्द्र राम ने बताया -1 जनवरी शौर्य दिवस भीमाकोरेगांव की लड़ाई की वर्षगांठ है, जो 18वीं सदी में महाराष्ट्र में हुई थी। यह लड़ाई उन 500 महार शूरवीरों का इतिहास है जिन्होंने ब्राह्मण पेशवाओं के आंतकवाद का सामना किया था। उस समय, ब्राह्मण पेशवाओं ने ऊंच-नीच भेदभाव का इतना आतंक फैला दिया था कि शूद्रों को अपने गले में हांडी और पिछवाड़े पर झाड़ू बांधकर चलने पर मजबूर किया जाता था। यह इसलिए किया जाता था ताकि शूद्र जमीन पर न थूकें और उनके पैरों के निशान मिट जाएं, जिससे ब्राह्मण अशुद्ध न हों।

यह लड़ाई शूद्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने ब्राह्मण पेशवाओं के आतंक का सामना किया और अपने अधिकारों के लिए लड़े। यह दिवस उनकी बहादुरी और संघर्ष को याद करने के लिए मनाया जाता है।

शैलेश कुमार जिलाध्यक्ष ने बताया कि 500 महार शूरवीरों ने 31 दिसंबर की रात्रि को 30 किलोमीटर पैदल चलकर भीमाकोरेगांव पहुंचे और 28,000 पेशवा ब्राह्मणों से लड़ने के लिए तैयार हो गए। यह लड़ाई 1818 में हुई थी और दलितों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अवधेश कुमार जी ने बताया कि 1 जनवरी 1818 को, ईस्ट इंडिया कंपनी की बॉम्बे प्रेसीडेंसी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की संख्यात्मक रूप से बेहतर 28,000 सेना को हराया।

इस लड़ाई में महार सैनिकों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और पेशवा की सेना को हराया। मृत सैनिकों की स्मृति में अंग्रेजों द्वारा कोरेगांव में एक विजय स्तंभ बनवाया गया था। 1928 में, बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर ने यहां पहले स्मरणोत्सव समारोह का नेतृत्व किया था। तब से, हर साल 1 जनवरी को, अंबेडकरवादी उच्च जाति शासन के खिलाफ अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए भीमा कोरेगांव में इकट्ठा होते हैं।

इसके अलावा, वक्ताओं ने माता सावित्रीबाई फूले जी द्वारा दलित महिलाओं के लिए खोली गई पहली पाठशाला का भी उल्लेख किया। इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किए।

बहन चन्दा ने कहा राज्य सभा में सम्बोधित करते हुए मा० गृह मंत्री जी ने बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर जी का जो अपमान किया है वह क्षमा योग्य नहीं है । इस दिनेश कुमार, सुरेश कुमार, दर्शन गान्धी लोक गायक, डा० कुरील, कुलदीप, अशोक कनौजिया, महेश, बनवारी ,अश्विनी कुमार , प्रदीप वैद्यजी, शशान्त, सुबाष, राजकुमार, सुकालू, सूपाभगत सहित सैकड़ों लोगों ने शिरकत की ।

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