तुलसी के राम विषयक संगोष्ठी सम्पन्न

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राजन

मिर्ज़ापुर। अन्तर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान, संस्कृति विभाग के द्वारा प्रदेश के बीस जनपदों में मनायी गयी ‘तुलसी-जयन्ती’ की श्रृंखला में श्रीवृद्धेश्वरनाथ-मन्दिर गिरिजापुर, बूढ़ेनाथ मार्ग मिर्ज़ापुर के आस्थान-मण्डप में ‘तुलसी के राम’ विषयक शोध-संगोष्ठी हर्षोल्लास सम्पन्न हुई।

श्रीवृद्धेश्वरनाथपीठाधीश्वर महन्त डॉ. योगानन्द गिरि महाराज की सभापतित्व, भाजपा जिलाध्यक्ष बृजभूषण सिंह के मुख्यातिथ्य एवं आर्ट ऑफ लिविंग के प्रदेश सह सेवा संयोजक भागवताचार्य कृष्णानन्द जी के विशिष्टातिथ्य में आयोजित समारोह का शुभारम्भ श्रीबूढ़ेनाथ जी के पूजन एवं गोस्वामी तुलसीदासजी के चित्र पर माल्यार्पण और दीप-प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।


कार्यक्रम के प्रथम चरण में भजनानन्दी जटाशंकर, लोकगीत गायिका रानी सिंह एवं मृदंगाचार्य पप्पू के निर्देशन में श्रीरामचरितमानस के पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड का संगीतमय पाठ हुआ। ढोलक, हारमोनियम, तबला और मृदंग की संगति से संगीतमय सुन्दरकाण्ड की प्रस्तुति से उपस्थित श्रोता भक्ति-तरंगिणी में गोता लगाते रहे। इसी क्रम में जयपुर से पधारे प्रख्यात गायक श्री मोहन स्वामी ने तुलसीकृत ‘ठुमुक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनियाँ’ की मनोहारिणी प्रस्तुति से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया, जिनके साथ मुम्बई से पधारे तबला-बादक रतनलाल ने तबला पर संगत दिया।


प्रख्यात शिक्षाविद् एवं साहित्यकार पण्डित ब्रजदेव पाण्डेय को एवं नवगीतकार गणेश गम्भीर को गोस्वामी तुलसीदास सम्मान से विभूषित किया गया। पण्डित ब्रजदेव पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि गोस्वामी तुलसीदास कलिपावनावतार हैं। जब विदेशी आक्राताओं और विधर्मी मुग़लों के कदाचार से भारतीय प्रजा निराशा के घनान्धकार में डूबी हुई थी, तब गोस्वामी तुलसीदास ने सनातन धर्म को जीवनीशक्ति प्रदान की।


मुख्य वक्ता साहित्यभूषण डॉ. अनुज प्रताप सिंह ने गोस्वामी तुलसीदास के जीवन और साहित्य के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला। डॉ. सिंह ने तुलसी कृत श्रीरामचरितमानस के अन्यान्य संस्करणों एवं विविध स्थान पर संरक्षित खण्डित-अखण्डित पाण्डुलिपियों की तुलनात्मक व्याख्या की।


आचार्य गणेश देव पाण्डेय ने तुलसी के राम की मनोहारी व्याख्या की। जहाँ विशिष्ट अतिथि भागवताचार्य कृष्णानन्द जी महाराज ने तुलसीदास के जीवन और साहित्य पर अधिकाधिक शोध करने पर बल प्रदान किया, वहीं वरिष्ठ समाजसेवी राजेश सिंह राष्ट्रवादी ने विन्ध्यक्षेत्र में प्रभु श्रीराम के सन्दर्भ की चर्चा करते हुए ‘बाल्मीकि तुलसी भये तुलसी रामग़ुलाम’ की सन्दर्भसहित व्याख्या की।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में कविगोष्ठी की आयोजना की गयी। विख्यात नवगीतकार गणेश गम्भीर ने तुलसी के राम के साथ सबके राम को अपनी कविता का विषय बनाया।
सबके अपने राम, क्या दक्षिण क्या वाम। वैदिक भी हैं,लौकिक भी हैं,मर्यादाओं-आदर्शों के, अनुभव-अर्जित निष्कर्षों के श्रेष्ठ सनातन यौगिक भी हैं , जन जन के हैं राम सौम्य सरल अभिराम।
डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ ने तुलसीप्रिया रत्ना के चरित को रेखांकित करते हुए सवैये की कर्णप्रिय प्रस्तुति से श्रोताओं को आनन्द-गद्गगद कर दिया। अविकारी अन्हारी निशा पसरी पथ सूझत नाहीं न राह दिखे रे। घटवार न घाट, घटी न घटा, न घटी जमुना जल-राशि बिखेरे। मृत-देह सनेह बनी तरणी अहि-रज्जु गवाक्ष प्रिया लखि टेरे।
अनुराग-तड़ाग उगी रतना छवि श्रीतुलसी-उर छन्द लिखे रे।।
सोनभद्र से आये कविराज पण्डित रमाशंकर पाण्डेय ‘विकल’ ने विश्वकवि गोस्वामी तुलसीदास की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए अपने सरस छन्दों की प्रस्तुति से वातावरण को तुलसीमय कर दिया।
कवि-कंज अनेक जहाँ अब भी इस हिन्दी-सरोवर मध्य भले हैं।
कितने दल मस्त पराग जने कितने मधुपक्ष सँभाल पले हैं।
पर, रूप समन्वय का मधु औ’ मकरन्द लिये तुलसी निकले हैं।
भव-सागर लंघन हेतुक राम चरित्र सुनिश्चय धार चले हैं।।
भदोही से पधारे वरिष्ठ कवि डॉ. कृष्णावतार त्रिपाठी ‘राही’ ने तुलसी-जयन्ती के अवसर पर सीतामढ़ी के वटवृक्ष के नीचे गोस्वामी तुलसीदास के तीन रात्रि विश्राम और श्रीरामचरितमानस के रचना-सन्दर्भ को रेखांकित किया।


समारोह की अध्यक्षता कर रहे महन्त डॉ. योगानन्द गिरि जी महाराज ने ‘तुलसी के राम’ विषय पर वैदुष्यपूर्ण व्याख्यान दिया। महन्त जी ने कहा कि वाल्मीकि के राम मानव हैं, जबकि ‘तुलसी के राम’ असीम-अनादि अनन्त होने के साथ साथ के समन्वय की विराट् चेष्टा करते हैं।


कार्यक्रम का संचालन डॉ. जितेन्द्रमार सिंह ‘संजय’ ने किया। इस अवसर पर जिला सूचना अधिकारी ओमप्रकाश उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार सन्दर्भ पाण्डेय, अमित श्रीनेत, गौरव उमर, विन्ध्यवासिनी केसरवानी, सन्तोष श्रीवास्तव, देवेशप्रताप सिंह गहरवार, अमरेश दुबे, बऊ मिश्रा, महात्मा विवेक गिरि, महात्मा अवधेश गिरि, उत्तराधिकारी सुधानन्द गिरि जी महाराज सहित बड़ी संख्या में मिर्ज़ापुर-सोनभद्र के बौद्धिक कविताप्रेमियों की उपस्थिति सराहनीय रही। अन्त में संयोजक डॉ. जितेन्द्र कुमार सिंह ‘संजय’ ने सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

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