अमित मिश्रा
विश्व हिन्दू परिषद के स्थापना पर हुई चर्चा
सोनभद्र । विश्व हिन्दू परिषद के प्रान्त धर्म प्रसाद प्रमुख नर सिंह त्रिपाठी ने विश्व हिन्दू परिषद के स्थापना की आधारभूत बिन्दुओं को बताते हुए कहा कि यह संगठन एक मात्र विश्व मे निवासरत् हिन्दु समाज के सुरक्षित संरक्षित व सवंर्धित करने के लिए अवतरित हुआ है।
विश्व हिंदू परिषद की ध्येय यात्रा के आगामी श्री कृष्ण जन्माष्टमी को स्थापना दिवस के 60 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं ।
भगवान श्री कृष्ण के अवतार के कालखंड में देश की स्थिति और परिषद की स्थापना के समय देश की स्थिति में पर्याप्त साम्य था।
60 वर्ष की गौरवशाली यात्रा के कुछ अविस्मरणीय और अनूठे पड़ाव जिनका स्मरण और उल्लेख प्रासंगिक है, स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम संदीपनी साधनालय पवई मुंबई में 1964 श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर देशभर की हिंदुओं की दशा और दिशा के चिंतन हेतु एकत्रित हुए स्वामी चिन्मयानंद, संघ के द्वितीय सरसंचालक पूज्य गुरु, के एम मुंशी, मास्टर तारा सिंह, कुशक बकुला, सुशील मुनि और भी कई उपलब्ध प्रतिष्ठित मनीषी द्वारा स्थापित विश्व हिंदू परिषद द्वारा प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ के अवसर पर प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन आयोजन किया गया ।
इस अवसर पर हिंदू समाज ने वर्षों बाद अपने सभी मत पंथों के पूज्य धर्माचार्यों का दर्शन एक मंच पर किया ।
यह सुयोग बन पाया पूज्य श्री गुरु जी की प्रेरणा और परिषद के प्रथम महामंत्री दादा साहब आप्टे के अनथक श्रम से ।
पूज्य संतों द्वारा उस सुअवसर पर दिए गए भाषण आज भी परिषद के कार्य की प्रेरणा बने हुए हैं…..
संतो के वचन थे, मैं इस विराट हिंदू समाज का अंग भूत घटक हूं मेरे पंथ के प्रथम पुरुष ने हिंदू समाज के कल्याण के लिए ही इस पंथ की स्थापना की…
1969 में उडुपी के हिंदू सम्मेलन मंच पर विराजमान पूज्य संतों द्वारा घोषणा हुई हिदुत्व सहोदरा सर्वे न हिंदू पतितो भवेत इस उद्घोषणा से बिखरे हुए हिंदू समाज में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ और अस्पृश्यता के विरुद्ध हिंदू हम सब एक के भाव को पुष्ट किया। 1979 प्रयाग संगम तट पर द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन संपन्न हुआ तब तक परिषद का विस्तार समुद्र पार तक पहुंच चुका था इस बार मंच की शोभा बढ़ाने के लिए संत चरण परम पावन पूज्य दलाई लामा जी का सानिध्य विश्व हिंदू परिषद को अलौकिक कर रहा था….
1981 में मीनाक्षीपुरम के दुर्भाग्यपूर्ण धर्मांतरण के बाद गिरीवासी/ वनवासी बंधुओं के बीच सेवा कार्यों की श्रृंखला खड़ी करने का संकल्प साथ ही साथ संस्कृति रक्षा, धर्म रक्षा निधि का समर्पण समाज से प्राप्त कर देशभर में सवा कार्य की श्रृंखला आरंभ कर दी गई…
1983 में गंगा आरती और भारत माता राथारूढ होकर एकात्मता यात्रा निकाली गई ।
सभी भेद टूट गए आसेतु हिमालय गूंज उठा भारत माता की जय! गंगा माता की जय!
1984 श्री अयोध्या जी में सरयू की पावन रेती पर 7 अक्टूबर को आरंभ हुआ रामलला की जन्म भूमि पर विदेशी आक्रमणकारी बाबर के नाम पर बना अवैध ढांचा ताले में बंद प्रभु राम जी के विग्रह को मुक्त कर भव्य राम मंदिर के निर्माण का दुनिया और सहस्रताब्दी का सबसे बड़ा जनआंदोलन हिंदू के सामूहिक शक्ति के प्रकटीकरण का सुपरिणाम और प्रभु राम जी अपने जन्म स्थान पर निर्मित भव्य मंदिर रूपी भवन पर विराजमान हो गए ।
हिंदू समाज के सम्मान के प्रत्येक संघर्ष में परिषद का अनूठा योगदान रहा…
विश्व हिंदू परिषद ने अब तक लगभग 9.30 लाख बंधुओ और भगिनियों की घर वापसी कर चुका है ।
इतना ही नहीं लगभग 40 लाख लोगों को धर्मांतरण के चंगुल से बचाने का काम भी विश्व हिंदू परिषद द्वारा किया है ।
अपने स्थापना के काल से ही गौ वंश- रक्षण और संवर्धन में विश्व हिंदू परिषद द्वारा लगभग 88 लाख गायों को बचाया गया है ।
इन गायों को बचाने में कई बार गौरक्षकों का विधर्मियों से संघर्ष भी हुआ और कई कार्यकर्ताओं पर मुकद्दमे भी हुए और इसमें 10 कार्यकर्ता हमारे गोवंश की रक्षा करते हुए बलिदान भी हुए।
1995 से अब तक लगभग 1लाख 74000 हिंदू कन्याओं की रक्षा लव जिहाद रूपी विभीषिका से विश्व हिंदू परिषद द्वारा की गई। आज वर्तमान समय में दुनिया के 32 देश में विश्व हिंदू परिषद की समिति है केवल अमेरिका में 10 बड़े हिंदू सम्मेलन हुए। जिसमें 70000 हिंदू एक स्थान पर एक साथ आए।
हिंदू वर्ड कांग्रेस में 61 देश के 2500 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए ।
इसका आयोजन थाईलैंड में किया गया।
छड़ी मुबारक तक सिमट चुकी अमरनाथ यात्रा का पुनर्जीवन,
हिंदू विरोधी मानसिकता से ग्रसित तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा हिंदुओं की आस्था और श्रद्धा को कुचलकर रामसेतु तोड़ने का दुस्साहस किया गया जिस पर परिषद की भूमिका से एक बड़े आंदोलन और सामूहिक संगठित हिंदू का परिचय देकर रामसेतु को न सिर्फ टूटने से बचाया अपितु घर-घर रामसेतु की शिला भेज कर फिर से राम के अस्तित्व और प्रभु राम के समता मूलक समाज के स्वरूप को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की…
गौ रक्षा, गौ संवर्धन, अमरनाथ श्राइन बोर्ड आंदोलन का कुशल नेतृत्व साथ ही महर्षि देवल, परशुरामाचार्य, स्वामी रामानंद तथा स्वामी दयानंद सरस्वती जी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए परिषद अपने स्थापना काल से ही धर्मांतरित बंधुओ के घर वापसी जैसा सत्कार में भी लगा हुआ है…
मठ मंदिर की सुरक्षा और उनका गौरव, अर्चक पुरोहित, तीर्थ और संस्कृत, वेद की पुनर्प्रतिष्ठा का कार्य भी परिषद प्रमुखता के साथ अपने कंधों पर लिए है…
इतना ही नहीं गिरीवासी/ वनवासी अंचल में परिषद अपने बंधुओं के बीच सेवा कार्य अपना समाज, अपने पुरखे, अपनी परंपराएं, अपने संस्कार, अपने त्यौहार, अपने रीति रिवाज आदि को अक्षुण्ण बनाते हुए निरंतर साधनारत है…
संगठन बढ़ा तो कार्यक्षेत्र और कार्य के प्रकार भी बढ़े साथ ही हिंदू समाज और देश के समक्ष अप्रत्याशित रूप से चुनौतियां भी बढ़ी …
गोपाल के देश में गोवंश का बहता हुआ रक्त
अपने ही देश में विस्थापित कश्मीरी हिंदू, लगातार हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ,
किसी भी घटना को अंजाम देने के लिए लाखों की संख्या में घर के अंदर घुसे हुए रोहिंग्या शरणार्थी, जिहादी सोच को बढ़ावा देकर पुष्पित पल्लवित होता आतंकवाद,
हिंदू बहन बेटियों को प्रेम जाल में फंसा कर उनको अपने घर, परिवार, धर्म, संस्कार और संस्कृति से दूर कर अपनों के विरुद्ध ही खड़ा करने वाला लव जिहाद, देश के अंदर देश के विरुद्ध सर उठाता नक्सलवाद, साथ ही साथ विदेशी धन से अपने बंधुओं तथाकथित अनुसूचित/ जनजातियों का होता हुआ ईसाईकरण, मठ मंदिरों का सरकारीकरण,
जनसंख्या संतुलन का पहाड़ जैसा भेद, लगातार 8ःकी दर घटती हिंदू आबादी साथ ही 43ः की गति से बढ़ता हुआ मुस्लिम आबादी,
मुस्लिम समाज की अप्रत्याशित मांग जैसे मौलिक अधिकार के तहत कुछ भी खाने की छूट भले ही करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र बिंदु गोवंश ही क्यों ना है देश में रहकर भी लाखों क्रांतिकारियों के बलिदान का उद्घोष रहा राष्ट्रगीत वंदे मातरम का गान न करना पूरी दुनिया में मनाया जाने वाला योग दिवस का बहिष्कार करना वक्त बोर्ड के नाम पर अकूत देश की संपत्ति का अधिग्रहण करना इस्लाम और शरीयत के नाम पर जनसंख्या विस्फोट चार शादी देश के राष्ट्रीय तिरंगे का अपमान करना मद्रास में राष्ट्रगान ना करना आदि और भी बहुत कुछ,
पतित पावनी मां गंगा का सिमटता क्षेत्रफल,
टूटते हुए हिंदू परिवार, कन्या भ्रूण हत्या,
प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से मौसम का बिगड़ता संतुलन, राष्ट्रहित की भी कीमत पर मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे तथाकथित अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति को मिलने वाले आरक्षण में योजना पूर्वक मुसलमान को शामिल करना, हिंदू जीवन मूल्यों का क्षरण
तथा एक ही देश में दो विधान
यह सिर्फ चुनौतियां नहीं है आने वाली पीढियों के लिए जिंदा रहने की कीमत है…
क्या हिंदू होना ही अपराध का पर्याय है ???
क्या सर्वे भवंतु सुखिनरू सब के सुख की कामना करना ही हिंदुओं के लिए अभिशाप हो गया ???
क्या वसुधैव कुटुंबकम का भाव रखना ही हिंदुओं के लिए अपने ही देश में अपनी ही परंपराओं के लिए कुठाराघात करने वाला हो गया???
हमें इन चुनौतियों का न सिर्फ सामना करना है बल्कि अपने महापुरुषों के शौर्य, त्याग और पराक्रम को जागृत कर राष्ट्र विरोधी हिंदू विरोधी और मानवता विरोधी तत्वों को मुंहतोड़ जवाब देना है । अरे बदली होगी किसी ने डर कर अपनी संस्कृति और सभ्यता, हम तो वह हैं जिन्होंने शकों को, कुषाणों को आत्मसात किया जो दुनिया को कदमों में झुकने का सपना लेकर भारत में आए थे…
वह हम ही हैं जहां पर राष्ट्र की भविष्य की चिंता में एक पन्ना धाय मां भी अपने कलेजे के टुकड़े को मृत्यु की गोद में सुला देती है यह सोचकर कि राष्ट्र का भविष्य सुरक्षित रहना चाहिए…
वह हम ही हैं जो दुश्मन की ललकार पर अपने पुत्र को भी पीठ में बांधकर दुश्मनों से युद्ध लड़ने के लिए रानी लक्ष्मीबाई बनने का साहस रखते हैं…
वह हम ही हैं जब गुरु पुत्रों के रूप में कोई जोरावर सिंह, फतेह सिंह बनकर सरहिंद की दीवार में जिंदा चुनना स्वीकार किया और देश की जय और धर्म की जय का यशोगान करना बंद नहीं किया …
वह हम ही है जब कोई नर पिशाची अलाउद्दीन खिलजी माता पद्मावती का मान भंग को लालायित होता है तो अपनी हजारों सखियों के साथ माता पद्मावती जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर पूरे 16 सिंगार करके आग की लपटों में स्वयं को न्योछावर कर अपने और अपनों के सतीत्व की रक्षा करती हैं …
वह हमारे ही पुरखे है जो नितांत अभाव में जीवन यापन करने वाले संत रविदास जी जो तथाकथित रैदास बिरादरी के थे परंतु अपने धर्म की रक्षा के लिए, अपने वेद की रक्षा के लिए और आने वाली पीढियां को संदेश देने के लिए सिकंदर लोदी को संदेश कहा ….
वह हम ही हैं जब कोई मुगल आक्रांता अकबर भारत को जीतने का सपना लेकर आया था किंतु हिंदू धर्म ध्वजवाहक धर्म रक्षक महाराणा प्रताप के सामने न सिर्फ घुटने टेके अपितु कभी सामने से लड़ने का साहस भी ना कर सका
वह हम ही हैं जब कोई औरंगजेब पूरी दुनिया को तलवार के दम पर शरियत के नीचे लाने की कोशिश कर रहा था तब कोई मराठा सरदार छत्रपति शिवाजी के रूप में हिंदवी स्वराज की स्थापना कर औरंगजेब के मुंह पर कालिख पोत दी…
वह हम ही हैं जो महाराजा सुहेलदेव के रूप में सालार मसूद की सेना को गाजर मूली की तरह काटकर उसके इस्लामी राष्ट्र के मंसूबे पर पानी फिरा दिया…
माना कि चुनौतियां भीषण है किंतु हमारा आत्म बल भी हिमालय पर्वत सा है ।
हमें पूर्ण विश्वास है हम अपने अनथक श्रम और ध्येय निष्ठा और अपने पुरखों के सौर्य व पराक्रम के दम पर जिन्होंने 800 वर्षों तक मुगलों के आतंक और क्रूरतम अत्याचार सहकर भी अपने धर्म, अपनी मान्यता, अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति, अपने संस्कार, अपने त्यौहार अपने मान बिंदु से कोई समझौता नहीं किया और आज भी हम उनके वंशज होने के नाते 100 करोड हिंदू जीवित है…
हम विजयी होंगे और फिर से भारत माता की पताका दिग-दिगंत तक फहराएंगे और पुनः विश्व गुरु के पद पर भारत माता को आरूढ़ करेंगे…..
जय श्री राम
इस मौके पर विहिप जिलाध्यक्ष विद्याशंकर पाण्डेय, हरिशंकर वर्मा, गोपाल सिंह, उपेन्द्र कुमार सिंह, जयप्रकाश चतुर्वेदी, संतोष कुमार पाण्डेय, प्रदीप पाण्डेय समेत दर्जनो कार्यकर्ता मौजूद रहे।