इस शिव मन्दिर में लगे हजारों तालों में छिपी है लोगो के किस्मत की चाभी

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मोहम्मद आरिफ

मुख्य द्वार छोड़कर हर ओर श्रद्धालु लगाते है ताला,

ताले वाले शिव मंदिर की अनोखी परंपरा

श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने के लिए मंदिर प्रांगण मे लगाते है ताला

संगम नगरी का नागेश्वर नाथ महादेव मंदिर बना आकर्षण का केंद्र

प्रयागराज। भगवान शिव की आराधना का पवित्र सावन महीने की धूम है ऐसे में शिवालयों में भारी भक्तो का जमावड़ा देखने को मिल रहा है। इसी कड़ी में प्रयागराज के मुठ्ठीगंज क्षेत्र में एक ऐसा अनोखा शिव जी का मंदिर है जिसकी मान्यता चौकाने वाली है ।

इस मंदिर को लोग ताले वाला मंदिर कहते है जिसका असली नाम नागेश्वर नाथ महादेव मंदिर है। मंदिर की खास बात यह है की श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए मंदिर प्रांगण में ताला लगाते है और मनोकामना पूरी होने के बाद ताला खोलकर अपने साथ ले जाते है। पूरे मंदिर प्रांगण में हजारों की संख्या में ताले लगे हुए है । बस श्रद्धालुओ को अपने ताले की पहचान करनी जरूरी होती है इसलिए श्रद्धालु अपने ताले पर कोई निशान जरूर लगा देते है। मुख्य द्वार को छोड़कर जिस ओर भी आपकी नजर जाएगी हर तरफ आपको ताले ही ताले नजर आएंगे। बेहद संक्रिय गली से होकर श्रद्धालु मंदिर पहुंचते है ।लगभग 5 फीट गहराई में छोटे आकार वाले महादेव मंदिर की चर्चा पूरे जिले भर में होती है । सावन के पावन महीने में मंदिर की मान्यता और बढ़ जाती है ऐसे में हर दिन सेकडो की संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना के साथ साथ अपनी मुराद पूरी होने के लिए ताले भी साथ लेकर आते है । इसी कड़ी में ज़िले की रहने वाली श्रद्धालु प्रज्ञा चौबे भी ताला लेकर भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंची । श्रद्धालु प्रज्ञा का कहना है की काफी लोगो से उन्होंने इस मंदिर के बारे में सुना था की यहां दर्शन करने से साथ ही मुराद पूरी करने के लिए ताला लगाने से जल्द ही मनोकामना पूरी होती है जिसकी वजह से वह यहां आई है । इसी तरह ऋषिका का कहना है 20 दिन पहले वह इस मंदिर में अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए आई थी , पूजा अर्चना करने के बाद उन्होंने मंदिर प्रांगण में ताला लगाया था । ऐसे में आज जब उनकी मान्यता पूरी हो गई तो वो खुद ताला खोलने यहां पहुंची है।

उधर नागेश्वर नाथ महादेव मंदिर के पुजारी शुभम द्विवेदी का कहना है यह मंदिर 700 साल से भी पुराना है । 3 साल पहले मंदिर को नया रूप दिया गया है । मंदिर का इतिहास मुगल शासन से भी जुड़ा हुआ है क्युकी अंदर की दीवार में उर्दू फारसी भाषा का पत्थर भी लगा हुआ है। मुख्य पुजारी शुभम द्विवेदी बताते है की ताले लगाने की परंपरा बेहद पुरानी है , धीरे धीरे करके आम लोगो को जब इसकी जानकारी हुई तो ताला लगाने की परंपरा में इजाफा देखने को मिला। उन्होंने यह भी बताया की हर दिन सेकडो की संख्या में ताले लगाएं जाते है और हर दिन किसी की मानोंकामना पूरी होने के बाद बड़ी संख्या में ताले खोले भी जाते है ।

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