आचार्य दिनेश पाण्डेय
बौद्धिक-क्षमता अर्जित करने का पर्व गुप्त-नवरात्र
सोनभद्र। ऋषियों का ‘यत पिंडे तत ब्रह्माण्डे’ कथन आध्य्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कसौटी पर भी हर पल शोध का विषय बना हुआ है । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अद्धभुत है तो मानव-शरीर भी रहस्यातीत है । ऋषियों ने कोटिसूर्य की बात कही तो मानव शरीर में भी अनन्त सूर्य सदृश तेज है जो सुषुप्त अवस्था में है, उसे ही जागृत करने के लिए योग, तप, साधना, व्रत, उपवास आदि के विधान किए गए ।
समाज संचालन में शासक एवं शासित की तरह ज्ञान के क्षेत्र में गुरू और शिष्य तथा लोकजीवन में पुरोहित और गृहस्थ की व्यवस्था बनी है । शक्ति-संचय का पर्व वर्ष में शारदीय एवं वासन्तिक नवरात्र में विख्यात है । भगवान राम ने भी रावण से युद्ध के पूर्व मां दुर्गा से शक्ति पाने के लिए शरद-ऋतु में कठोर उपासना की थी । वैसे तो श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में एक सौर वर्ष में 9 नवरात्र के पर्व का उल्लेख है । जिसमें शारदीय, वासन्तिक के अलावा आषाढ़, श्रावण (सावन), भाद्रपद, कार्तिक, मार्गशीर्ष (अग्रहायण), माघ एवं फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक व्रत-उपवास के साथ मां दुर्गा से उपासक शक्ति प्राप्त शक्ति प्राप्त कर सकता है । इसे नवाह यज्ञ बताया गया है । ब्रह्मांड में विद्यमान शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा से अनन्त ऊर्जा प्राप्त करने के अलावा 9 माह गर्भ में रखकर जन्म देने वाली मां के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का भी विधान परिलक्षित होता है । पुराणकारों का मानना है कि प्रचीनकाल हमारे ऋषियो, मुनियों ने इस तरह के तप-बल से प्रकृति से संवाद किया और प्रकृति में व्याप्त रहस्यों को मानवकल्याण के लिए प्रकट किया । आज विज्ञान भी इन ऋषियों के ही ज्ञान को आधार बनाकर अनेकानेक खोज करने में सफल हुआ है ।
शारदीय एवं वासन्तिक नवरात्र जिसे प्रकट नवरात्र कहा जाता है, के अलावा आषाढ़ एवं माघ महीने में गुप्त नवरात्र का भी उल्लेख उक्त पुराण में है । प्रचलन के अनुसार गृहस्थों के कल्याण के लिए वैदिक विद्वान पूजा-अर्चना शारदीय नवरात्र में करते हैं । आहरण एवं वितरण के सिद्धांत के अनुसार वैदिक जन भी यदि मां दुर्गा की उपासना कर शक्ति संचय नहीं करेंगे तो उनका तेज- बल दिनोदिन कम होता जाएगा लिहाजा शारदीय एवं वासन्तिक नवरात्रों में अपने श्रद्धालुओं के लिए पूजन, अर्चन कर आशीष देने की सामर्थ्य पैदा करने के लिए वैदिकों, पुरिहितों, सन्तों, महात्माओं को भी गुप्त नवरात्र के अवसरों पर व्रत-उपवास तथा शक्ति-संचय का उपाय करना चाहिए ।
देवीभागवत महात्म्य में ‘पठितव्यं प्रयत्नेन नवरात्र-चतुष्टये, वैदिकै:निजगायत्रीप्रीतये नित्यशो मुने ।’ श्लोक में उन विद्वतजनों को भी मां दुर्गा की सतत साधना का विधान बताया जो अपने यज्ञमानों (जजमानों) के लिए पूजा-पाठ और आशीर्वाद देते रहते हैं । इसी पुराण के 12वें स्कंध के 21वें श्लोक में भक्तों की चार श्रेणियां बतायी गयी । जिसे वैष्णव, शैव, सौर तथा गाणपत्य भक्त शामिल है । इन सभी लोगों को अपनी रुचि के अनुसार या समस्त नवरात्रों पर साधना करनी चाहिए । इससे वह तेज प्राप्त होता है कि ‘यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं’ का उद्घोष साकार रूप लेता है ।
इस वर्ष 6 से 15 जुलाई तक आषाढ़ मास में जो नवरात्र हैं, वह गुप्त नवरात्र है । अतः इस अवधि में वैदिक वर्ग यथा पुरोहित, ज्ञानी, सन्त, महात्मा आने वाले शारदीय नवरात्र पर ‘माँ’ के उपासकों को कल्याण का आशीष देने की सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए साधना करते हैं । कुछ गृहस्थ भी आस्था के चलते गुप्त नवरात्र साधना में संलग्न होते है ।