24 वर्ष बाद दर्ज हुआ खतौनी में राज्यपाल का नाम, 21 लोगो ने दान की हुई जमीन को खरीदा है
जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर लगाई न्याय की गुहार
दो लोगो ने दिया था अस्पताल के लिए जमीन दान, एक दानदाता का नाम निरस्त कर राज्यपाल का नाम हो चुका है दर्ज, दूसरे दानदाता का नाम 6 मई 2022 को हुआ निरस्त
सोनभद्र। जिले में जमीन विवाद को लेकर वर्ष 2019 में उभ्भा कांड राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में रहा तमाम राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाया और योगी सरकार को घेरने का काम किया था। इसके बाद प्रदेश एसआईटी गठित करके सोसाइटी व संस्थाओं की जमीन का जांच कराया था। इसके बावजूद भी जिले में जमीन विवाद खत्म नही हुआ और राजस्व विभाग की खामियों का परिणाम आज आम जनता भुगत रही है। जिले में राजस्व विभाग की लापरवाही से आज 21 लोग बेघर होने की कगार पर है क्योकि वर्ष 1997 में एक व्यक्ति ने सरकारी अस्पताल के लिए अपनी जमीन राज्यपाल के नाम दान कर दिया लेकिन उसका नाम खतौनी पर दर्ज रहा जिसके आधार पर वह तीन लोगों को वर्ष 2019 में जमीन बैनामा किया तो उसकी मृत्यु के बाद पुत्रो ने वारिस के तौर पर नामदर्ज कराया और जमीन बेच दिया। जिले में 18 मई को राज्यपाल का दौरा सम्भावित है जिस सक्रिय हुए राजस्व विभाग ने 6 मई राज्यपाल का नाम खतौनी में दर्ज कर कब्जा खाली कराने पहुच गया, जिससे बैनामादारो में खलबली मच गई। जिलाधिकारी कार्यालय पर आज बैनामादारो ने पहुच कर गुहार लगाई की लेखपाल व अन्य अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है क्योंकि खतौनी में जिस आराजी नम्बर में ग्रामीणों ने जमीन लिया है उसी आराजी नम्बर में राज्यपाल का नाम भी अंकित हो गया है । राजस्व विभाग की गलती का खामियाजा अब ग्रामीण को भुगतना पड़ेगा इस जमीन का कोई हल निकलेगा या नही यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा ।
जमीन की प्रारम्भिक जानकारी मे पता चला की वर्ष 1997 मे सीताराम व उदय कुमार ने ग्राम कचनरवा परगना अगोरी के खाता संख्या 793 , 1863 , 1919 , 1920 , 1921 , के अराजी नम्बर 77ख/0.36 , 75क/0.04 , 76/0.06 , 77क/0.016 , 75ग/0.02 , 80ख मी0/0.045 के योग 7 गाटा रकबा – 1.250 हे0 मालगुजारी 60ख के अनुसार दानपत्र के आधार पर राज्यपाल का नाम 06 मई 2022 को दर्ज किया गया।
तहसील के जिम्मेदार अधिकारी की माने तो 1997 मे अस्पताल के लिये दान मे मिले जमीन का कागजी कोरम हो गया था लेकिन किस कारण से केवल खतौनी मे नाम दर्ज नही हो सका था। उदय कुमार के पुत्र ने लिखित रुप से शिकायत किया है की सीताराम व उदय कुमार ने जमीन दान दिया था और उदर कुमार की जमीन का नाम राज्यपाल के नाम पर कर दिया गया था किस त्रुटीवश सीताराम का नाम नही कट सका , सीताराम के पुत्रो द्वारा इस जमीन का विक्रय किया जाने लगा था । जाँच किया गया तो पाया गया की दो व्यक्तियो ने राज्यपाल को रजिस्टर्ड जमीन दान दिया था एक दानदाता का नाम कट कर राज्यपाल के नाम दर्ज हो गया था दुसरे का नाम दर्ज नही हो सका जिसका अनुचित लाभ जमीन की विक्रय कर लिया जाने लगा ।

रमाशंकर यादव ने बताया कि वह मजदूरी कर कुछ पैसा जुटा कर अपने परिवार के सिर पर एक अदद छत की जुगाड़ में अपनी पुस्तैनी जमीन भी बेंच दिया । राज्यपाल का नाम खतौनी मे दर्ज होने की सूचना मिलने पर मजदूर के सर से छत जाने का डर सताने लगा। मजदूर का कहना है कि अगर कोई हाल नही निकलता है तो हम सड़क पर आ जायेंगे हैम अपने परिवार के साथ जान दे देंगे।

वही पीड़ित विजय शंकर तिवारी ने बताया कि तीन साल पहले वह जमीन का बैनामा खाताधारक से लिया और खतौनी में कही भी राज्यपाल का नाम अंकित नही था जबकि खाताधारक सीताराम ने वर्ष 1997 में ही अस्पताल के लिए राज्यपाल के नाम जमीन दान किया था। राजस्व विभाग ने 6 मई 2022 को राज्यपाल का नाम खतौनी में दर्ज किया है। 24 वर्ष बाद खतौनी में राज्यपाल का नाम दर्ज किया गया जबकि तहसील स्तर के अब तक सोए हुए थे इसके लिए अधिकारी दोषी है जिसका खामियाज आज 21 लोगो को भुगतना पड़ रहा है। हम लोग आज जिलाधिकारी से मिलकर अपनी शिकायत दर्ज कराया है अगर हम लोगो को बेदखल किया गया तो धरना प्रदर्शन किया जाएगा।

पीड़ित महिला मंजू देवी ने कहा कि अस्पताल के लिए जमीन दाने वाले सीताराम से वह जमीन बैनामा लिया था उस वक्त खतौनी में राज्यपाल का नाम कही अंकित नही था। 6 मई 2022 को राज्यपाल का नाम खतौनी में अंकित किया गया और राजस्व विभाग के लोगो द्वारा जमीन खाली करने का दबाव बनाया जा रहा है।

इस सम्बंध में तहसीलदार ओबरा सुनील कुमार ने बताया कि कचनरवा गांव के सीताराम और उदय ने सरकारी अस्पताल के लिए जमीन दान दिया था जिसके तहत खतौनी में राज्यपाल का नाम दर्ज हुआ। कुछ दिनों पूर्व उदय के पुत्र ने शिकायत किया कि उदय कुमार के पुत्र ने लिखित रुप से शिकायत किया है की सीताराम व उदय कुमार ने जमीन दान दिया था और उदर कुमार की जमीन का नाम राज्यपाल के नाम पर कर दिया गया था किस त्रुटीवश सीताराम का नाम नही कट सका , सीताराम के पुत्रो द्वारा इस जमीन का विक्रय किया जाने लगा था । जाँच किया गया तो पाया गया की दो व्यक्तियो ने राज्यपाल को रजिस्टर्ड जमीन दान दिया था एक दानदाता का नाम कट कर राज्यपाल के नाम दर्ज हो गया था दुसरे का नाम दर्ज नही हो सका जिसका अनुचित लाभ जमीन की विक्रय कर लिया जाने लगा ।
